यह देखकर अच्छा लगता है कि दोस्त आपके जीवन की समस्याओं में शामिल हो कर न केवल अपनी चिंता प्रकट करते हैं बल्कि अच्छी सलाह भी देते हैं।
बीते दिनों तुलसी के पौधे के संक्रमित होने के बारे में फ़ेसबुक पर लिखा तो जो भी साथी उसके बारे में कमेंट करने आए, वे पौधे को काटने की बजाय उसे बचाने की सलाह दे रहे थे। उन साथियों की यह चिंता गौर करने लायक़ है। इसलिए पौधे को काटने से पहले मैंने नेट पर उसके बारे में जानकारी हासिल की।
मेरे तुलसी पौधे पर स्केल्स का संक्रमण हुआ था और जितने घरेलू नॉन टॉक्सिक प्रयोग किए जा रहे थे वे बिल्कुल काम नहीं आ रहे थे। मुझे हैरानी थी कि ऐसा क्यों हो रहा था!! तो इसका उत्तर नेट सर्च में मिला।
तुलसी पर लगभग आठ प्रकार के संक्रमण होते हैं। जिनमें से एक है स्केल्स का संक्रमण। ये २-३ मिमी के परजीवी हैं। तुलसी पौधे की हरी टहनियों एवं पतियों पर चिपक जाते हैं और उसका रस चूसते हैं। इस तरह पौधे की पत्तियाँ सूख कर पीली पड़ जाती हैं और पौधे का बढ़ना रूक जाता है। साथ ही ये परजीवी एक तरह का चिपचिपा द्रव्य उत्पन्न करते हैं जो कि चींटियों को आकर्षित करता है। चींटियों को आकर्षित करने का सबसे बड़ा कारण है कि ये स्केल्स के लिए वाहन का काम करती हैं। इससे स्केल्स अन्य पौधों तक पहुँच सकते हैं। इस चिपचिपे द्रव्य के कारण मिट्टी में फंगस भी उत्पन्न हो जाती है। और ये सब मिलकर पौधे का समूल नाश कर सकते हैं।
एक बहुत बड़ा प्रश्न मेरे सामने यह था कि मेरे घर में ये स्केल्स आए कहाँ से? यहाँ चींटियों का नामोनिशान तक नहीं है। तो नेट पर मिली जानकारी के अनुसार ये हवा में उड़ते हुए डस्ट द्वारा भी पौधे तक पहुँच जाएँ तो पौधे को संक्रमित कर सकते हैं। मेरे केस में भी यही हुआ प्रतीत होता है। इन दिनों गर्मी के मौसम में खिड़की खुली रहती है और सूखी धूल भरी हवाएं चलती रहती हैं। अत: यह कारण काफ़ी हद तक सही लग रहा है।
अब यह जानना ज़रूरी है कि स्केल्स पर किसी घरेलू दवा का असर क्यों नहीं होता है। दरअसल जैसा कि इन परजीवियों का नाम ही स्केल्स है यानी शल्क, तो यह नाम इनकी संरचना की वजह से दिया गया है। बाहर से इनके ऊपर एक ऐसा कार्टिलेज कवच बना हुआ है जो कि कीटनाशक से इनकी रक्षा करता है और ये आसानी से खत्म नहीं किए जा सकते हैं। क्योंकि बाहर से नहीं ख़त्म किए जा सकते इसलिए हमारे सभी उपाय असफल हो गए। लेकिन केमिकल कीटनाशक के प्रयोग से इन्हें नष्ट किया जा सकता है। तुलसी एवं इसके परिवार के अन्य पौधों की पत्तियों को खाने के लिए काम में लाया जाता है, इसलिए रासायनिक कीटनाशक का उपयोग नहीं किया जाता है।
और एक अन्य उपाय यह कर सकते हैं कि जैसे ही परजीवी की उपस्थिति का ज्ञान हो, वैसे ही शुरुआत में ही रूई को अल्कोहल में डुबोकर किसी लकड़ी की डंडी पर बांध कर उस से टहनी पर चिपके स्केल्स को हटाने की कोशिश की जाए। मेरे पौधे पर यह संक्रमण अत्यधिक फैल गया था इसलिए यह उपाय काम का नहीं था। ऐसी परिस्थिति में पौधे की संक्रमित टहनियों को काट देना उचित था। इसलिए जब मैंने पूरा पौधा परजीवी के हवाले कर देने की बात कही तो मित्रों को यह बात पसंद नहीं आई।
मैं भी चाहती थी कि पौधे को कुछ नुक़सान ना हो। लेकिन इतना संक्रमित पौधा देखकर उसके बचाव की संभावना नगण्य थी। मगर अब मैंने एक चांस लिया है और पौधे की जड़ के पास वाले तने को छोड़कर बाकी पूरा पौधा काट कर स्केल्स के हवाले कर दिया। इस हिस्से पर स्केल्स नहीं दिख रहे तो मैंने सोचा कि देखते हैं…, क्या पौधे को नया जीवन मिल सकता है!! तने के इस हिस्से पर रूई को अल्कोहल से भिगोकर घुमा दिया। गमले पर भी रूई को फिराया। मिट्टी को हिलाकर ऑक्सीजनेटेड किया। घरेलू दवा का छिड़काव कर दिया। अब जो होगा, देखा जाएगा!
एक संभावना है कि मिट्टी में भी स्केल्स की उपस्थिति हो सकती है। यदि ऐसा होता है और पौधे पर पुनः संक्रमण होता है तो पूरे गमले सहित पौधे को विदा करना पड़ेगा।
काश! नई उगने वाली साफ़ सुथरी कोमल तुलसी की टहनियाँ संक्रमण से मुक्त रहें!
-पूजा अनिल