गुरुवार, 30 मई 2024

धरती पर हमारी ज़िम्मेदारी


 आजकल मेरे फ़ोन में मौसम एप्प में एक फ़ीचर पर रोज़ ध्यान जा रहा है। वो है, तापमान के एवरेज रेंज से तुलना करके यह बताना कि औसत तापमान से कितना अधिक तापमान चल रहा है। जैसे इस तस्वीर में दिखा रहा है कि मद्रिद में औसत से 10 डिग्री अधिक तापमान चल रहा है। 
2050 तक तापमान के बहुत ऊँचा जाने की मौसम विज्ञान की भविष्यवाणी थी। लेकिन यदि इस गति से तापमान बढ़ता रहा तो 2030 तक तो धरती के निवासी भुने हुए धरतीवासी हो जाएँगे। क्या अब पेड़ लगाने की मुहीम कुछ काम आएगी? शहर तो शहर, अब तो गाँवों में भी पेड़ लगाने की ज़मीन नहीं मिलती। तो फिर? ऐसे में कितने वृक्ष लगाए जा सकते हैं?
और मान लीजिए कि मर जुड़ कर हर तरफ़ पौधारोपण/ वृक्षारोपण कर भी लिया तो कितने वर्षों में घने पेड़ों की सुहानी छाँव मिल पाएगी? 
कुल मिलाकर इस समस्या का हल ए सी कमरों में बैठ कर तो नहीं ही मिलेगा। वीआईपी स्टेट्स भुलाकर एक साधारण मनुष्य की तरह धरती पर जीवन जी सकें तो कितना कुछ त्यागना पड़ेगा, है न? 
त्याग नहीं करना है तो थोड़े छोटे छोटे काम इस धरती के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी समझ कर अवश्य कर लीजिए। कुछ बहुत आसान से काम हैं। अमीर गरीब का भेद भूलकर इन पर केवल जनता को ही नहीं बल्कि कॉरपोरेट जगत और राजनीतिक दुनिया, फ़िल्म वर्ल्ड वालों को भी अमल करना चाहिए। 

१- दिन भर चलते पंखे, ए सी, कूलर पर टाइमर लगाइए ताकि जब कमरे में ठंडक हो जाए तो ये सारे उपकरण स्वतः बंद हो जाएँ। बिजली का बिल भरने से आप अमीर नहीं होते बल्कि स्वच्छ हवा में साँस लेना, आपको अमीर बनाता है। अत: स्वच्छ हवा के लिए बिजली कम से कम खर्च करके बिजली के बिल में कटौती करें, बदले में शुद्ध हवा पाएँ। 
२- टी वी, फ्रिज, वाशिंग मशीन आदि घरेलू उपयोग के उपकरण, बिजली खपत में A सिम्बल वाले लें। जो कुछ ऊर्जा आप खर्च करते हैं, वो इसी पृथ्वी पर उत्पादित की जाती है। अत: जितनी अधिक खपत उतना अधिक उत्पादन और उसी अनुपात में पृथ्वी के रिसोर्सेज़ का दोहन किया जाएगा। पड़ोसी का न सही, अपना ही भला सोच कर ऊर्जा की बचत करें। 
३- अंधाधुंध कपड़े और जूते ख़रीदने के कार्यक्रम पर स्वयं रोक लगाइए। धरती पर ऐसे कपड़ों का ढेर लग गया है जिन्हें कोई पहनने वाला नहीं है। नए, पुराने… हर तरह के कपड़े धरती की साँसें घोंट रहे हैं। यदि आप खुद साफ़ हवा में साँस लेना चाहते हैं तो पहले इस धरती को भी साँस लेने दीजिए। अनावश्यक कपड़ों की ख़रीदारी मत कीजिए। बाज़ार को केवल पैसे से मतलब है, आपकी सेहत से नहीं, अत: अपनी सेहत की चिंता आप स्वयं कीजिए। कपड़ों जूतों से सेहत नहीं बनती, केवल आपकी अलमारी भरती है। एक ही बार उपयोग कर कपड़े फेंक देने की प्रवृत्ति को टाटा बाय बाय कर दीजिए अब। आपको अंदाज़ा भी नहीं होगा कि एक कपड़ा बनने में धरती की कितनी ऊर्जा खर्च हो रही है और नतीजे में धरती गर्म हो रही है। 
४- सजावटी सामान की कितनी आवश्यकता होती है आपको? बहुत ही कम, है न? लेकिन सजावट के सामान से घर भरा पड़ा है, किसलिये? उस पर तुर्रा यह कि एक वस्तु से बोर हो गए तो उसे  उठा कर फेंक दिया और मार्केट से नया प्रोडक्ट ले आए, क्यों भई क्यों? ज़रा रूक जाओ। घर को मार्केट प्रोडक्ट प्रयोगशाला मत बनाओ। थोड़ी कम सजावट होगी तो कोई असुंदर नहीं दिखेगा घर। घर की वास्तविक रौनक़ तो आप स्वयं ही हो। 
५- पानी को नहीं भूल सकते। उतना ही खर्च करें जितनी ज़रूरत हो। आप अफोर्ड कर सकते हैं इसका यह मतलब नहीं कि जितना मर्ज़ी पानी बहाएँगे!! धरती पर सीमित सप्लाई है पानी की, जिस दिन ख़त्म हो जाएगा, उस दिन राजा हो या मिडिल क्लास, सबके लिए त्राहि त्राहि होगी। अभी ही संभव जाइए। सोसायटी में रहते हैं तो वहाँ नियम बनाइए कि सभी इस प्राकृतिक उपहार का महत्व समझ सकें। 
६- अनावश्यक प्रोडक्शन की बढ़ती माँग के कारण कई ज़हरीली गैस, अशुद्ध पानी का बायप्रोडक्ट उपजाती फ़ैक्टरी से अनियंत्रित पर्यावरण प्रदूषण हो रहा है। कोशिश कीजिए कि अनावश्यक वस्तुओं के लालच में न आएँ। दिखावे के छल से खुद को भी रोकें और दूसरों को भी। इस तरह प्रदूषण कम करने में सहायक बनें। 
आप सजग हों तो औरों को भी सजग कीजिए। धरती पर बढ़ते तापमान, साइक्लोन, असमय भारी वर्षा इत्यादि की प्राकृतिक चेतावनी को नज़रअंदाज़ नहीं करें। रईसी इसी में है कि स्वच्छ हवा पानी से भरपूर हरी भरी धरती आपके रहने लायक़ सुंदर और स्वस्थ हो, उसके लिए अपने हिस्से का प्रयास अवश्य कंरे, तभी आप धरती पर रहने का आनंद ले पाएँगे। हर एक, छोटे से छोटा प्रयास निश्चित ही काम करेगा, ऐसा मैं मानती हूँ। 
इस संदेश को अन्य लोगों तक भी पहुँचाइए। 

गुरुवार, 9 मई 2024

बच्चों को अपनी भाषा सिखाएँ

हम भारत से बाहर रहने वालों के लिए अपनी भाषा सिखाना चुनौती भरा कार्य होता है। यहाँ की भाषा तो वे स्कूल में सीख जाते हैं। लेकिन अन्य भाषाओं के लिए अभी तक कम ही स्कोप है। वैसे स्पेन में अंग्रेज़ी अब पाँव पाँव चलना सीख चुकी है लेकिन जब मेरे बच्चों ने जन्म लिया तब तक यहाँ की सड़कों पर (अंग्रेजों को छोड़कर) अंग्रेज़ी कहीं सुनाई नहीं देती थी। 

और यहाँ छोटे से परिवार में अपनी भाषा सिखाने के लिए अधिकतर परिवारों में माँ पापा ही होते हैं। ऐसा ही हमारे साथ भी था। ऐसे में हमने बच्चों को पैदाइश से ही सिखाने के लिए अथवा कहिए कि बहुभाषी बनाने के लिए तय किया कि मैं अंग्रेज़ी में बात करूँगी और बच्चों के पापा सिंधी भाषा में। स्पेनिश लोग आस-पास थे ही, स्पेनिश में बात करने के लिए। 

सिंधी भाषा में हिंदी से भी अधिक वर्ण होते हैं। मर्मस्थल सम्मत वर्णों का उच्चारण अत्यधिक उन्नत है। इससे दोनों बच्चों की ज़बान शुरू से ही साफ़ हो गई। बाद में (जन्म से ही ) टी वी पर भारतीय चैनल सुनते देखते और हिंदी गीत सुनकर हिंदी सीख गए और स्कूल शुरू करने पर स्पेनिश सीख ली, बाद में फ़्रेंच सीख गए। अब डच सीख रहे हैं। 

यह जो बच्चों का एक साथ चार भाषाएँ सीखने का क्रम था, इससे मैंने एक बात सीखी कि बच्चों को किसी भी भाषा में अनुवाद करके किसी से वार्तालाप नहीं करना पड़ता था बल्कि वे उसी भाषा में सोचने में सक्षम हैं जिस भाषा में बात हो रही है। 

अत: मैं प्रत्येक माता-पिता, अभिभावक से कहूँगी कि बच्चों को आप वे सभी भाषाएँ सिखाएँ जो आप और आपके परिवार में बोली जाती हैं। अपने और कई अन्य परिवारों के अनुभव से कहती हूँ कि इस प्रक्रिया में बच्चों पर बिलकुल मानसिक दबाव नहीं पड़ता है, बल्कि वे बड़ी प्रसन्नता से एक साथ कई भाषाएँ सीख जाते हैं। और बड़े होने पर आपको धन्यवाद कहेंगे कि आपने न केवल उन्हें  भाषाई ज्ञान से समृद्ध किया है बल्कि दुनिया में आगे बढ़ने के लिए भी द्वार खोल दिए हैं।