डॉक्टरस अपने नैतिक धर्म के तहत विनती कर रहे हैं कि घर में रहें, अपना ध्यान रखें और भीड़ का हिस्सा न बनें। लोकल प्रशासन भी अपना कर्तव्य पूरा कर रहा है कि शहरों में कर्फ़्यू लगा दिया, पाबंदी लागू कर दी, सामान्य गतिविधि के लिये भी समय सीमा और जगह निर्धारित कर दिये।
जनता भी किसी तरह पीछे नहीं रही, मेसेज शेयर किये, एक दूसरे को सलाह दी, बातों ही बातों में दुख प्रकट किया, कोरोना पीड़ितों को सांत्वना के दो शब्द भी कहे।
लेकिन कोई तो है जो इस सब के बावजूद अनजाने ही कोरोना से संक्रमित हो रहे हैं, साथ ही अनजाने ही दूसरों को भी संक्रमित कर रहे हैं। वह कैसे? संभवत: मास्क नहीं धारण किया हो! या फिर दो मीटर की दूरी न बनाये रखी हो!! या फिर संक्रमित हाथोँ से अपने नाक मुँह / आँख छू लिये हों!! या फिर जान बूझ कर उतर पड़े हों मैदान में कोरोना राक्षस से दो दो हाथ करने की मंशा से!! कौन जाने सच्चाई!!यह हम तो नहीं जानते!! हाँ, यह ज़रूर समझ लिया है कि यदि आप मौक़ा देंगे तो कोरोना रूपी असुर आपका आतिथ्य स्वीकार कर बड़ा प्रसन्न होगा। एक के बदले दस बीस के यहाँ मुफ़्त मैं जीमने का मौक़ा मिलेगा तो कोई भला क्यों न प्रसन्न होगा!!!
धन्य हैं वे लोग जो असुरों के प्रति सद्भावना रखते हैं और मित्र, परिवार तथा अपनों के साथ स्वयं अपनी भी आहुति देने में बिलकुल पीछे नहीं हट रहे हैं। कोरोना को तो ऐसे ही लापरवाह लोग बहुत पसंद हैं।इनकी मनमर्ज़ी से मज़े ले ले कर उसकी तो जीवन नैया वेग से चल रही है।
लेकिन हे मानव जन! जीवन तो तुम्हारा ही लील गया यह!! तुमको ही खाकर तो पल बढ़ रहा कोरोना! क्या कहा? पता नहीं चल रहा कि कहाँ छुप कर वार कर रहा दुश्मन? तो सबसे अचूक उपाय यही है कि श्रीमान जी/ श्रीमती जी तुम भी घर मैं छुप जाओ न! तुम क्यों मैदान में कूद कर उसकी खुराक बन रहे हो? बोलो?
चलो, माना कि तुमको देश की परवाह नहीं, शहर की भी नहीं, समाज की नहीं, परिवार की भी नहीं, तो कम से कम अपनी खुद की तो परवाह कर लो जी!!
-पूजानिल