बुधवार, 28 फ़रवरी 2018

मत रोना

देखो, बारिशों में कभी मत रोना
भीगेगी देह भी
भीगेगी रूह भी 
तब धूप भी न होगी 
कि मन की नमी सोख ले!
और सुनो, मत रोना गर्मियों में 
आंसूं और पसीना 
एक से दिखेंगे 
कोई आँख में छिपी 
दर्द की लकीर 
पकड़ ही न पायेगा।
बहुत मन करे तो रो लेना 
पतझड़ में 
किसी डाल से गिरते 
सूखे पत्ते पर गिरा देना 
अपना एक आंसूं 
जी उठेगा वो 
नवजीवन की आस में।

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