एक बूँद
सोमवार, 2 मई 2022
मैं खत रूहानी लिखती हूँ
रविवार, 1 मई 2022
माँ के लिए पत्र
स्पेन में मई के प्रथम रविवार को मातृ दिवस मनाया जाता है, जैसे कि आज एक मई को मनाया जा रहा है। माँ को मातृ दिवस पर अनंत प्रेम के साथ बधाई भेज रही हूँ। मेरे पास माँ के लिए लिखा गया एक पुराना पत्र है, अब माँ तो नहीं रहीं, लेकिन उनकी याद प्रति पल जीवित रहती है, आज उन्हें लिखा मेरा यह पत्र अपने ब्लॉग पर साझा कर रही हूँ जो उनके जीते जी उन तक भेजने की कभी हिम्मत नहीं जुटा पाई।
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मेरी प्यारी ममा!
गुरुवार, 28 अप्रैल 2022
जीवन, बेअंत जीवन
जीवन है एक बड़ी नाव ,
सांस छोटी सी नैया।
जीवन तैरता रहता है पानी पर,
स्थिर कभी, गतिमान कभी।
दूर तक साये सा दिखता रहता है।
फिर एक दिन धम् से ग़ायब!
जैसे कोई चमत्कार।
साँस आती है, जाती है,
ओझल हो जाती है,
पलक झपकने तक कि फुरसत नहीं देती
कि उसे ठीक से अनुभव कर पायें।
जिस क्षण पकड़ में आती है,
छटपटाहट दमदार देती है,
मानो अगले ही पल प्राण निकल जायें।
और वहीं ततक्षण आज़ाद हो
विलीन हो जाती है अपने राम में!
मंगलवार, 26 अप्रैल 2022
मेरे प्यारे मोहन भैया
शुक्रवार, 18 मार्च 2022
शुभ होली
शुभ हो पर्व रंगों का
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गुलाबी नीला मन लाल जामुनी,
निराला बडा चटक माह फागुनी।
सोमवार, 14 जून 2021
संस्मरण - माँ की रोटी
मेरी डायरी से अंश-
गुरुवार, 15 अप्रैल 2021
सुरक्षा आपके अपने हाथ है
डॉक्टरस अपने नैतिक धर्म के तहत विनती कर रहे हैं कि घर में रहें, अपना ध्यान रखें और भीड़ का हिस्सा न बनें। लोकल प्रशासन भी अपना कर्तव्य पूरा कर रहा है कि शहरों में कर्फ़्यू लगा दिया, पाबंदी लागू कर दी, सामान्य गतिविधि के लिये भी समय सीमा और जगह निर्धारित कर दिये।
जनता भी किसी तरह पीछे नहीं रही, मेसेज शेयर किये, एक दूसरे को सलाह दी, बातों ही बातों में दुख प्रकट किया, कोरोना पीड़ितों को सांत्वना के दो शब्द भी कहे।
लेकिन कोई तो है जो इस सब के बावजूद अनजाने ही कोरोना से संक्रमित हो रहे हैं, साथ ही अनजाने ही दूसरों को भी संक्रमित कर रहे हैं। वह कैसे? संभवत: मास्क नहीं धारण किया हो! या फिर दो मीटर की दूरी न बनाये रखी हो!! या फिर संक्रमित हाथोँ से अपने नाक मुँह / आँख छू लिये हों!! या फिर जान बूझ कर उतर पड़े हों मैदान में कोरोना राक्षस से दो दो हाथ करने की मंशा से!! कौन जाने सच्चाई!!यह हम तो नहीं जानते!! हाँ, यह ज़रूर समझ लिया है कि यदि आप मौक़ा देंगे तो कोरोना रूपी असुर आपका आतिथ्य स्वीकार कर बड़ा प्रसन्न होगा। एक के बदले दस बीस के यहाँ मुफ़्त मैं जीमने का मौक़ा मिलेगा तो कोई भला क्यों न प्रसन्न होगा!!!
धन्य हैं वे लोग जो असुरों के प्रति सद्भावना रखते हैं और मित्र, परिवार तथा अपनों के साथ स्वयं अपनी भी आहुति देने में बिलकुल पीछे नहीं हट रहे हैं। कोरोना को तो ऐसे ही लापरवाह लोग बहुत पसंद हैं।इनकी मनमर्ज़ी से मज़े ले ले कर उसकी तो जीवन नैया वेग से चल रही है।
लेकिन हे मानव जन! जीवन तो तुम्हारा ही लील गया यह!! तुमको ही खाकर तो पल बढ़ रहा कोरोना! क्या कहा? पता नहीं चल रहा कि कहाँ छुप कर वार कर रहा दुश्मन? तो सबसे अचूक उपाय यही है कि श्रीमान जी/ श्रीमती जी तुम भी घर मैं छुप जाओ न! तुम क्यों मैदान में कूद कर उसकी खुराक बन रहे हो? बोलो?
चलो, माना कि तुमको देश की परवाह नहीं, शहर की भी नहीं, समाज की नहीं, परिवार की भी नहीं, तो कम से कम अपनी खुद की तो परवाह कर लो जी!!
-पूजानिल