बुधवार, 29 मई 2019

बड़ी बिंदी वाली सखियाँ

कैसी इतरा रही हैं मेरी सखियाँ,
बड़ी सी बिंदी माथे सजाए,
ज़रा देखो तो... 
कैसे कैसे सपने संजोए 
रंग बिरंगी बिंदी के सहारे,
कैसी कैसी विपत्ति को कर आई हैं पार,
पहुंची किस तरह किनारे,
कह रही हैं अपनी जुबानी,
बिंदी वाली कहानियां सुहानी, 
मेरी सखियाँ, 
ज़रा देखो तो... 
कितनी तो कठिनाइयाँ आईं,
कितनी तो राहें इन्होने बनाईं, 
खोज ही लेती हैं हर मुश्किल का हल,
रुक जाने का इनको नहीं कोई विकल्प, 
कितनों के लिए बनीं प्रेरणा,
कितनों का हुईं आसरा,
कितने ही ससुराल सँवारें 
कितने ही मायके तारें,
मेरी सखियाँ, 
ज़रा देखो तो... 
कौन होगा जो इनके 
साहस पर न होगा प्रसन्न!
कौन होगा जो इनके लिए 
न कहेगा आशीर्वचन!
कौन होगा जो इनकी 
चंचल धार में न बह चलेगा! 
कौन होगा जो इनकी 
मधुर लोरी में न विश्राम लेगा! 
हर फ़न माहिर हैं 
मेरी सखियाँ, 
ज़रा देखो तो... 
हर कदम देख भाल 
कर हैं चलतीं,
आसमान छूने का 
संकल्प हैं करतीं,
मन में भरे हैं 
लगन और समर्पण,
आत्मा परमात्मा की  
विवेचना हैं करतीं,
मस्तक पर धारे हुए 
विशाल बिंदी,
हर रोज़ मुझे 
और अधिक अपनी हैं लगतीं 
मेरी सखियाँ, 
ज़रा देखो तो... 
-पूजा अनिल