सोमवार, 16 अक्तूबर 2017

देह से नाता

मैं जब इस जीवन से विदा ले चलूंगी
सोचो, साथ अपने क्या ले चलूंगी?

मेरे दुखों का बिछौना छूटेगा यहीं 
सुखों का खज़ाना भी रहेगा यहीं 
पति का साथ 
न होगा मुझे याद 
बच्चों की किलकारी 
न होगी मुझ पर तारी 
अब न होगी रोज़ रोज़ 
भाई बहनों की नोंक झोंक 
माँ का आशीष प्यार दुलार  
यही पहुंचेगा मुझ तक 
करके हर आकाश पार। 

जब प्राण मेरे तन से निकलेंगे 
सोचो, पीछे क्या मैं छोड़ जाऊँगी ?

न मेरे हाथों में समाएगी 
यादों की पोटली न कहीं छूटेगी 
जो मेरी स्मृति में थे विचरते 
अब मैं उनकी स्मृति बनकर रहूंगी। 
न मेरी अच्छाइयों पर संवाद होगा 
न बुराइयों पर विवाद होगा  
वो जो जीवन  भर साथ चलते रहे मेरे 
बस, उनके मन में छिपा अवसाद होगा 

देह से आत्मा का नाता टूटेगा 
सोचो, तब मेरे साथ कौन होगा?

दीवार पर मेरी तस्वीर टँगी होगी 
मंदिर के भी किसी कोने में सजी होगी 
देवों की तरह करेंगे मेरा पूजन 
दीपक बालकर मेरे आगे होगा तर्पण 
हर उत्सव में  याद करेंगे घरवाले 
फिर धीरे धीरे भूलेंगे मुझे हर पल 
किसी की यादों का पिटारा किसी रोज़ खुलेगा 
पूरा परिवार फिर मुझे अश्रुओं संग याद करेगा। 

इस दुनिया से विदा लेने से पहले 
सोचो, मैं क्या सन्देश देना चाहूंगी?

सुनिए देकर ध्यान 
मुझे आप सबसे यह है कहना  
न शोक करना उचित न विषाद में गढ़ना 
मुझे नहीं दिवार चाहिए 
न किसी की अश्रु नदी में है बहना 
न स्मृति में बसेरा चाहिए 
न दिए की ज्योति में बालना 
बस इतना समझ लेना 
तन मेरा माटी से बना, माटी हुआ 
मन मेरा, आकाश तत्त्व में जा मिला 
स्मृतियाँ, अग्नि को चढ़ीं भेंट 
अस्थिफूल, जल में हुए विसर्जित 
प्राण, मुझे प्रकृति ने ही दिए 
प्रकृति ने ही वापस लिए 
साँसें, जो देह में उठी गिरी 
वो देह के आस पास भटकेंगी 
शेष बचे जगत के 
रिश्ते नाते सम्बन्ध 
वो सब इसी धरा पर मिले, मिटे, बने 
अतः पुनः यही है कहना 
न शोक करना उचित न विषाद में गढ़ना। 

जब मेरी साँसों की डोर काया  छोड़ेगी 
सोचो, तब मैं तुम्हारी श्वास बनकर जी उठूंगी। 
-पूजा अनिल 

रविवार, 2 जुलाई 2017

सुनो दोस्त

    हम बिछड़ बिखर कर आज मिले हैं 
    ज्यूं सदियों जन्मों के बाद मिले हैं 
    हम नाम और शक्ल बदल जाने की 
    मियाद गुजरने  पश्चात् मिले हैं।  

    सुनो दोस्त,
    कुछ तुम अपनी आज सुनाना 
    और कुछ सबकी सुन लेना 
    बिछड़ कर मिलने की कसक और ख़ुशी 
    चुप चुप आँखों में चुन लेना 
    कुछ नम होंगी आँख तुम्हारी 
    कुछ होंठों पे मुस्कान खिलेगी 
    मेरी मुस्कान फिर तुम रख लेना 
    अपने आंसू मुझे तोहफे में देना।

    सुनो दोस्त, 
    जाने कितना जीवन बाक़ी है, 
    जाने कितना साथ है अपना, 
    मेरी मान, आज इस पल में 
    तुम बेहिचक गले से लग जाना,  
    जीवन की इस ढलती संध्या में 
    जब स्मृति दीप बुझने लगेंगे  
    जब नज़रों से भ्रम होने लगेगा 
    जब हाथों का कम्पन्न चरम पर होगा 
    तब हमारा ह्रदय आलिंगन ही 
    जीने का सबल सहारा होगा।   
    
    
    सुनो दोस्त,
    वो दिन हुए अब स्मृति में कैद 
    हैं साथ बीते पलों का मेला  
    बचपन के दिन और दिन स्कूल के 
    ले आये हैं आज यादों का रेला, 
    कुछेक तस्वीरें मेरी तुम्हारी 
    पुराने सामानों में हैं रखी 
    हुए पुराने अब हम और तुम भी  
    इस से पहले कि तस्वीर बनें हम 
    थोड़ा खुले आकाश में उड़ लें, 
    चलो, जी भर हम आज बतिया लें। 
    सुनो दोस्त....
   -पूजा अनिल