बुधवार, 31 मार्च 2010

परछाईयों का शहर 2

इसके पहले

गतांक से आगे....

मनीष के घर का दृश्य

"आई....!!! ओ आई!!!"
"दरवाजा खोल आई!! मैं हूँ, मनीष."
"आज बड़ी देर कर दी आने में मनु!!! कहाँ गया था रे? बाबा अभी अभी तेरी राह देख सोया है."
हाँ आई, आज एक भला मानुस मिल गया था, रस्ते में , उसके साथ बातें करते देर हो गयी."
"कौन था रे? यूँ अजनबी लोगों से बात ना किया कर, कभी कुछ जादू टोना कर दिया तो हम तो कहीं के न रहेंगे, देवा !!!!कुछ समझा बिटुआ को."
"नहीं आई, सच में भला इंसान था, देख, उसका कारड भी है मेरे पास."
और मनीष अपनी माँ को खाना खाते खाते सारी कहानी बताता है.
"कल ही जाता हूँ आई, ये साहब से मिलने.....फिर वो सारा दिन दूकान पर बैठ कर थोड़ी कमाई की जगह, बहुत पैसा लाऊंगा, प्रीती से शादी करके हम सब एक नवे फ्लैट में शिफ्ट हो जायेंगे, एक कार भी खरीद लेंगे आई, फिर तुम्हे रोज़ मार्केट पैदल नहीं जाना पड़ेगा. हम भी एक बड़ा आदमी बन जायेगा, और लोग मुझे सलाम करके मनीष साहब बुलायेंगे."
"मनु!!!!! मनु!!!! सपने देखने बंद कर और जल्दी खाना खा ले, कल सुबह तुझे नौकरी पर जाना है रे. चल, देर ना कर."
"क्या आई!!! तू मुझे सपने में भी बड़ा आदमी नहीं बनाने देती!!!!"
" बिटुआ, इंसान सपने देखने से नहीं, मेहनत करने से बड़ा बनता है, जिस दिन तू यह समझ जायेगा तो खुद ही बड़ा आदमी बन जायेगा रे."
"आई, तेरा बेटा बहुत मेहनत करेगा और सारे सपने सच कर लाएगा, देखना तू."
"जो भी काम करना बिटुआ, बहुत संभाल कर करना, इस शहर में आदमी कम और परछाइयाँ ज्यादा बसती हैं, एक पल को आदमी तुझसे बात करते दिखेगा और अगले ही पल तुझे पहचानेगा भी नहीं, साये से भी जल्दी साथ छोड़ देते हैं इस शहर के लोग."
"हाँ आई, मैं ध्यान रखूँगा, तू चिंता ना कर."
"चल अब चल कर सो जा."

* * * * * * * * * *


रविन के घर का दृश्य
"हाय स्वीटी!!!"
"हाय रविन"
"डैड और माम सो गये?"
"हाँ काफी देर हुई,उन्हें सोये हुये,तुम जानते हो ना,दोनों जल्दी उठा कर जोग्गिंग को जाते हैं, बोथ आर वेल ओर्गेनाइसड."
"एक तुम ही हो जो टाइम का ध्यान नहीं रखते, कहाँ देर हुई आज?"
"तसल्ली से बैठ कर बताता हूँ जानू , पहले कुछ खिलाओ पिलाओ यार, बड़ी भूख लग रही है"
"अच्छा जी!!! तो जनाब को भूख भी लगती है !!!! आज चाँद कहाँ से निकला है, देखना पड़ेगा!!!!"
"मजाक मत करो स्वीटी डार्लिंग, सच में भूख लग रही है, क्या बना है आज?"
"चलो, तुम फ्रेश हो कर आओ, तब तक में देवा चाचा को कहती हूँ खाना लगाने को."
"ठीक है, बलदेव से भी कह देना कि कार गेराज में पार्क कर दे."
"ओ.के."

रविन और स्वीटी खाना खाते हुये बातें करते हैं.
"ये चाचा क्या कमाल का खाना बनाते हैं , जी कर रहा है बस खाता ही जाऊं."
"बस!! बस!! रहने भी दो, कभी घर पर खाना खाने का टाइम मिलता है तुम्हे?? "
"तुम्हे तो पता है यार, कितना काम रहता है ऑफिस में, फिर मीटिंग्स, क्लाइंटस को डिनर पर ले जाना.... अच्छा!!! आज,पता है क्या हुआ??"
"क्या हुआ डिअर ?"
"ऑफिस से निकला तो एक लड़का मेरी कार को बड़े गौर से देख रहा था , मैं समझा कोई चोर है, कार चुराना चाहता है शायद, मैंने उसका पीछा किया और पकड़ लिया उसे, पर बड़ा ही मजेदार बंदा निकला वो तो."
"देखो रविन, ऐसे लोगों से दूर ही रहा करो, गार्ड से क्यों नहीं कहा उसे पकड़ने को, तुम्हे कुछ कर देता तो!!"
"अरे यार गार्ड बड़ी दूर था, अगर उसे बुलाता तो वो लड़का भाग जाता, और यूँ भी अच्छा ही हुआ जो पकड़ा उसे, एक नये लड़के की जरूरत भी थी, अपना विसिटिंग कार्ड दे कर आया हूँ, जरूरतमंद लग रहा था, देखना कल ही मेरे ऑफिस पहुँच जायेगा."
"सारे जरूरतमंद लोग जाने तुम्हे ही कैसे मिल जाते हैं???."
रविन मुस्कुरा कर बोला," तुम्हारे लिये एक नया डायमंड नेकलेस देखा है, परवेश को कहा है, कल घर ले आएगा, तुम्हे पसंद आये तो रख लेना. "
"वाव !!!!! तुम बहुत समझदार हो, और बातों को घुमाना भी खूब आता है तुम्हे."

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रविन का ऑफिस
"सर, सम मनीष नेम्ड परसन हेस कम टू मीट यू ."
"ओ.के., सेंड हिम इन आफ्टर ट्वेंटी मिनिट्स."
"ओ.के. सर."

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"अपुन अन्दर आयें क्या साहब??"
"अरे मनीष!!! आओ, आ जाओ!!!"
"बैठो, बैठो ...चाय , काफी कुछ लोगे?"
"क्या साहब, काहे शर्मिंदा करता है!!!"
"अच्छा कहो, कैसे आना हुआ?"
"साहब... वो..... आपने बोला था ना, कुछ काम दिलाएगा....."
"अरे हाँ, देखो , हमारी कम्पनी कपड़ा इम्पोर्ट करती है, हर 15 दिन में बाहर से शिपमेंट आता है, तो हमारी टीम को एक लड़के की जरूरत है. जो बड़े व्यापारियों को माल जाता है, उसके साथ, तुम्हे जाना होगा और रसीद पर उनके साइन करा कर लाना होगा, अगर तुम्हे कोई समस्या ना हो तो, मेरी सेक्रेटरी से कह देता हूँ, वो तुम्हारा कांट्रेक्ट बना देगी. "
"बस साहब, इत्ता सा काम!!!! इसका तो आप मेरे को बहुत कम पगार देगा......"
" 50 ,000 रुपया महीने का देंगे , अगर तुम्हे कम लगता है....."
"अरे नहीं साहब, यह तो बहुत पैसा है....... पन एक बात बताओ, इतने से काम का इतना पैसा देंगे, कहीं कोई गलत धंधा तो नहीं है ना साहब???"
"देखो मनीष, बड़ी जिम्मेदारी का काम है यह, बहुत पैसा इधर से उधर होता है इस काम में, तुम्हे बाहर गाँव जाना पड़ेगा, व्यापारी लोग तुम्हे पैसा देंगे , जो लाकर तुम्हे यहाँ अकाउनटेंट को जमा करना होगा, इसीलिए, इतना पगार दे रहे हैं, तुम्हे नहीं करना यह काम , तो......"
"नहीं, नहीं साहब, बोलो कब से आना होगा काम पर? अपुन को पूरा भरोसा है आप पर साहब."
"बाहर मेरी सेक्रेटरी से बात कर लो , वो सब बता देगी तुम्हे."
"अच्छा साहब, चलता है , थेंक यू."

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क्रमशः ........

5 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा लिख रही हो ,कथ्य और पात्र अच्छे हैं ,संवाद भी समयानुकूल लिखे हैं कुल मिला कर कहानी बाधती है पाठक को,आगे की कड़ी का इन्तजार है ...............

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  2. कहानी में जिस चीज ने हमें सबसे ज्यादा प्रभावित किया ..
    वो है...

    मजाक मत उड़ाइएगा प्लीज...
    :(
    वो है मनु की सेलरी....

    अजीब तो नहीं लगा पर सोचा...कि कैसे मनु की आई रोविन पर विश्वास नहीं कर पा रही है..
    और कैसे रोविन की बीवी को मनु एक आम उठाईगीरे से ज्यादा कुछ नहीं लग रहा....?

    एक लाईन पर बार बार नजर जा रही है....
    इस शहर में आदमी कम और परछाइयाँ ज्यादा बसती हैं, एक पल को आदमी तुझसे बात करते दिखेगा और अगले ही पल तुझे पहचानेगा भी नहीं............

    ज्यादा अनजाना नहीं लग रहा ये शहर,,,

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  3. कोई ऐसा शहर भी है...??

    जो ऐसा ना हो...

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  4. bahuut hi badiya pooja dear kaafi badiya likha hai getting better...........kab aa rahi hai aapki kitaab:P:P....aagai bhi aap aisa hi likhti rahein:P:P

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