रविवार, 9 नवंबर 2025

सपने या सच्चाई?

 किसी डाल पर सपने बैठे, किसी डाल पर सच्चाई, 

आँख खुली तो उड़ गए सपने, बची रह गई सच्चाई! 


साँसों की माला अद्भुत है, जो देती नहीं दिखाई, 

हर क्षण धारण करके फिरती जीव आत्मा साईं। 


दर दर भटकते मांगे भिक्षा, कुछ पैसा दे दो भाई, 

ईमानदारी से करें परिश्रम, पाएँ मेहनत की कमाई। 


चीं चीं चूँ चूँ कर झूठे वादे, जनता गई भरमाई, 

भ्रष्ट नेता और भ्रष्ट अधिकारी सबने इज़्ज़त गँवाई। 


धूप की तेज़ी, हवा की सरसर, तन को छूती माई, 

तेरे आँचल का स्नेह ओढ़ मेरे मन ने छैंया पाई। 


जिसकी जिव्हा पे “हरि नाम” पावन धुन है समाई, 

मीठे उसके वचन जैसे हो माखन मिसरी खाई। 

-पूजा अनिल 

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