सोमवार, 2 मई 2022

मैं खत रूहानी लिखती हूँ

 


मेरे ब्लॉग की यह सौवीं पोस्ट समर्पित है मेरे देश के नाम तथा मेरे सभी परिवारजन, दोस्तों के नाम। मैं कृतज्ञ हूँ उन सभी मित्रों और चाहने वालों के प्रति, जिन्होनें ब्लॉग्गिंग के दौर में मेरे लेखन के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त की एवं  मेरे अच्छे या बुरे, हर तरह के लेखन में मेरे साथ बने रहे, मित्रता निभाई और आगे बढ़ने को प्रेरित किया। आप सभी को पूर्ण हृदय से  प्रेम भरा धन्यवाद भेजती हूँ। 

साढ़े सात हज़ार किलोमीटर की दूरी से जब मैं अपना शहर, उदयपुर, देखती हूँ तो वो बस एक छोटा सा शहर नहीं रह जाता, बल्कि वो सम्पूर्ण देश में तब्दील हो जाता है।  धरती का विस्तार मेरी दृष्टि में प्रतिबिम्बित हो कर अधिक विस्तृत हो जाता है। कदाचित मेरे शहर की बात कहते हुए मैं अपने पूरे देश की धड़कन को महसूस कर रही होती हूँ। 


मैं इस दिल की सच्ची ज़ुबानी लिखती हूँ,
मेरे देश को मैं खत रूहानी लिखती हूँ,
कोने कोने पहुंचे सन्देश इन नम आँखों का, 
मासूम बचपने सी कोरी मनमानी लिखती हूँ। 
मैं माटी की गंध यहाँ संग लाई  हूँ,
इतिहास अपने वीरों का सुना सुना इतराई हूँ, 
कभी अपने देश की निशानी बन कर लहराई हूँ, 
मैं उसी तलवार की तेज़ रवानी लिखती हूँ,
मेरे देश को खत रूहानी लिखती हूँ। 
दैवीय उपहार हमारी भारत भूमि है, 
देश विदेश में सम्मानीय यह भूमि है,
बागों में, इसके खेतों में, खिलती जो तरुणाई है, 
मैं उसे तमाम ऋतुओं की रानी लिखती हूँ, 
मेरे देश को मैं खत रूहानी लिखती हूँ। 
न चोर न डकैत, न हो देश में भ्रष्ट कोई, 
नारी का सम्मान न करे कभी नष्ट कोई, 
देश को विश्व में न करे बदनाम कोई, 
प्रार्थना यह अपनी, भावभीनी लिखती हूँ, 
मेरे देश को मैं खत रूहानी लिखती हूँ। 
चाहे मैं लाख समुन्दर पार जा बसा,
मगर देश हिन्द सदैव हृदय का ताज बना, 
है यही देश जो नसों में आनंद बन कर बहा, 
मैं अपने उसी प्रिय देश की कहानी लिखती हूँ, 
मेरे देश को मैं खत रूहानी लिखती हूँ। 
- पूजानिल 

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