1. ज़िन्दगी भर जिसे
तलाशता रहा मैं...
आँखों की कोर में
भीगी
वो ख़ुशी
मुझे कभी दिखी नहीं।
2. ढलता हुआ सूरज
रोशन कर रहा था,
मेरे अस्तित्व को
और मैं...
खुद को ढूंढ़ रही थी
अपनी ही परछाई में।
3. क्षण-प्रतिक्षण
अपनों के साथ में,
ढूँढ़ा किये दोस्ती को,
मगर नज़र से छिपा रहा...
पल-पल साथ रहा जो मन।
हिंद युग्म में प्रकाशित क्षणिकाएं.