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बुधवार, 31 जुलाई 2024

एक जग पानी



तीसरे फ्लोर पर रहने वाली आँटी  ने शादी नहीं की थी। कोई विशेष कारण रहा होगा जो वे किसी से इस विषय पर चर्चा तक करना पसंद नहीं करतीं थीं। 

मैं हर सप्ताह में एक दिन उनसे मिलने चली जाती थी। बुधवार को मेरी क्लास जल्दी ख़त्म हुआ करती थी इसलिए हर बुधवार को मैं अपना टिफ़िन लेकर उनके साथ लंच करती थी। 
उनके लिए भी अकेलेपन की ऊब से बचने के लिए, सप्ताह में एक दिन ही सही, मेरा साथ सुखद हुआ करता था। हम दोनों मिलकर खाना खाते और ढेर सारी बातें करते। फिर शाम को मैं अपने घर चली जाती, जो कि चौथे फ्लोर पर था। 
इधर कुछ दिनों से आँटी मार्था अपनी टाँग टूटने से बेहद परेशान थीं। टाँग पर प्लास्टर चढ़ा दिया गया था। एक नर्स रोज़ सुबह आती थी, उन्हें नहलाने और मरहम पट्टी करने के लिए। बाद में एक हेल्पर आती घर में साफ़ सफ़ाई करने और खाना बनाने के लिए। यह तो रोज़ का काम निपट ही जाता लेकिन उनका घर से बाहर निकलना बिलकुल बंद हो गया था, जिससे उन्हें लगता था कि दुनिया के दरवाज़े ही बंद हो गए हैं। उस पर नीचे सड़क पर होने वाले शोर से उनको बड़ी चिढ़ मचने लगी थी। तन का दर्द मन की पीड़ा में परिलक्षित होने लगा था। 

एक बुधवार को जब मैं उनके पास बैठी थी तो बिल्डिंग के नीचे सड़क की बैंच पर बैठे किसी प्रेमी युगल की हँसी खिलखिलाहट सुनकर अचानक उन्हें ग़ुस्सा आ गया। उन्होंने अपनी हेल्पर अनिता को कहा कि जल्दी से एक जग भरकर पानी ले आए। मैं हैरान थी कि वे इतने सारे पानी का क्या करेंगी? जैसे ही अनिता पानी ले आई, आँटी ने मुझसे कहा, ये बेख़ौफ़ हँसी सुन रही हो न? देखो, कैसे निर्लज्ज हो गए हैं आजकल के युवा! इतना भी ख़्याल नहीं आता इन्हें कि कोई बूढ़ा बीमार इंसान ऐसी निर्लज्ज हरकतों पर कितना शर्मिंदा हो रहा होगा! तुम उस खिड़की से इन बेशर्मों पर यह पानी फेंक दो तो वे हटें यहाँ से! 
मैं उनकी ऐसी निष्ठुर बातें सुनकर सन्न रह गई। फिर खिड़की से झांका तो पाया कि बड़े प्यारे से दो लोग प्रेम में सुधबुध खोए एक दूसरे से बातें कर रहे थे। 
आँटी की फिर से आवाज़ आई, तुमने भी देखा न उन्हें? लो यह पानी, फेंक दो उनके ऊपर। 
मैंने कहा, नहीं आँटी,  इतनी कठोरता? यह तो बिलकुल ठीक बात नहीं! तोता मैना की जोड़ी बैठी बातें कर रही है, मैं उन्हें नहीं सता सकती। पानी फेंक कर तो कदापि नहीं। आप चाहें तो मैं नीचे जाकर उनसे बात कर सकती हूँ कि वे कहीं अन्यत्र जाकर बैठें ताकि आपको परेशानी न हो। 

मेरी बात सुन आँटी मुझसे भी नाराज़ हो गई। कुछ बड़बड़ाते हुए एकाएक वे रोने लगीं। “मैं चल पाती तो अब तक तो अवश्य उन्हें वहाँ से भगा देती। मुझे पता है, तुम मेरी सुनोगी ही नहीं! फिर उनका स्वर शांत होता गया- हाँ, यदि उस दिन तुम्हारी तरह अच्छे दिल वाली कोई लड़की वहाँ होती तो मेरी भी जोड़ी कभी नहीं टूटी होती! मैं और अन्तोनियो आज साथ जीवन जी रहे होते! मगर उस दिन  किसी ने हम पर पानी फेंका और गलती से जग भी आ गिरा, अन्तोनियो कोमा में चला गया, फिर कुछ वर्षों बाद डॉक्टर ने उम्मीद छोड़ दी, उसे जीवन से मुक्त कर दिया, रह गई मैं अंतहीन अकेलेपन के साथ! लेकिन आज तुमने मुझे वही पाप करने से बचा लिया बेटी!” अब वे अपने होश में आने लगी थीं। उनके कष्टकारी अतीत से परिचय होना भी कम पीड़ादायक न था। उन्हें एक आलिंगन देते हुए मैं सोच रही थी कि कोई इतना निर्दयी कैसे हो सकता था कि दो प्यार करने वालों को सहन नहीं कर पाए! 
-पूजा अनिल 
 #थोड़ासाप्यार 

मंगलवार, 16 जुलाई 2024

कारगिल युद्ध और जागृति की शादी- पार्ट 2

 अध्याय २- 16 जुलाई 1999 - सगाई करवाने वाले पंडित जी की धमकी 


प्रार्थना का असर था या इन्द्र देव बरस बरस कर थक चुके थे…कौन जानता है!! किन्तु मूसलाधार बारिश अब कम हुई और रूकी हुई गाड़ियों का क़ाफ़िला धीरे-धीरे ही सही लेकिन आगे बढ़ने लगा। लैंड स्लाइड वाली  पहाड़ी चढ़ाई की जगह पर भी मलबे को एक तरफ़ हटा कर गाड़ियों के गुजरने जितनी जगह बना दी गई थी। 16 जुलाई की सुबह हो चुकी थी  कल वाले कष्टों के बादल छँटने लगे थे। सही समय पर पहुँच जाने की उम्मीद जगने लगी थी। कुछ ही घंटों में जागृति की मिनीबस बंबई पुणे टनल तक पहुँच गई। टनल के बाहर बड़े से बोर्ड पर लिखा था “बोगद्यात थांबा नको (टनल में रूकें नहीं)! सब लोग प्रसन्न हुए कि अब गंतव्य तक पहुँचने से पहले कहीं रूकना नहीं है। 

लेकिन यह विचार जल्दी ही निराशा में बदल गया जब टनल क्रॉस करने के बाद पुनः ट्रैफ़िक जाम में अटक गए! 


जागृति के मन में दार्शनिक विचार आ रहे थे कि यदि एक शादी के लिए मार्ग पार करने में इतनी कठिनाई उठानी पड़ सकती है तो कारगिल युद्ध में सैनिकों को कितनी परेशानी हो रही होगी! देश प्रेम जन्मजात उसके ह्रदय में अंकित था। होता भी क्यों न? जागृति के पूर्वज देश का बँटवारा होने से पहले सिंध प्रांत में रहते थे। भारत देश को अपना देश मानने का उनका जज़्बा बँटवारे के समय उन्हें राजस्थान ले आया। अपना सब कुछ छोड़ छाड़ कर चले आना अत्यंत कष्टकारी था लेकिन देश प्रेम से बढ़कर नहीं था। शून्य से जीवन आरम्भ करने की हिम्मत जागृति को अपने पुरखों से ही प्राप्त हुई है। लेकिन आज तक उसे शिकायत है कि सरकार के वादे के मुताबिक़ उसके दादा परदादा को पाकिस्तान में छोड़ आए ज़मीन जायदाद में से कुछ भी नहीं दिया गया। ज़मींदार थे, शाही जीवन जीते थे, मगर शरणार्थियों की तरह ख़ाली हाथ आए वे, धीरे-धीरे अपने श्रम से जीवन अर्जित किया। 

लगता है कि सरकारों के वादे होते ही तोड़ने के लिए हैं! अन्यथा कारगिल युद्ध भी न हो रहा होता! फ़रवरी 1999 में ही तो लाहौर संधि के तहत बॉर्डर पर संदिग्ध गतिविधियों पर रोक लगाने की बात हुई थी। लेकिन हुआ क्या? पाकिस्तान के ग़लत इरादों के चलते युद्ध हो रहा था और हमारे देश के जवान सैनिक मारे गए। जागृति को इस बात से सख्त ऐतराज़ है कि राजनीतिक कारणों से जवानों की जान पर जोखिम हो! किसी अति महत्वाकांक्षी राजा के मन में एक विचार आता है कि उसे किसी अन्य देश की ज़मीन भी चाहिए और उसके पास हथियार भी तो हैं जो बिना प्रयोग किये जंग खा रहे हैं! तो बस..कर दो हमला पड़ोसी देश पर….और राजा के इस विचार की क़ीमत चुकाते हैं जवान सैनिक, जो देश प्रेम में अपनी जान न्योछावर करने के जज़्बे के साथ ही दिन रात जीते हैं!  और यह जुमला तो उसे बिलकुल हज़म नहीं होता कि “सैनिक बने ही इस लिए हैं!” उसका बस चले तो किसी जवान को असमय मृत्यु का सामना न करने दे। 


बात को भटकने से पहले ही मैं जागृति की कहानी पर लौट आई हूँ। तो हुआ यह कि रूक रूक कर चलती उनकी मिनीबस पुणे सबर्ब के किसी रेलवे स्टेशन के नज़दीक पहुँच गई थी। ट्रैफ़िक जाम को देखते हुए सबने तय किया कि जागृति और उसकी मम्मी को ट्रेन से पुणे रवाना कर दिया जाए, ताकि वे समय सगाई स्थल पर पहुँच सकें। इतनी सारी समस्याओं के बीच यही सबसे अच्छा समाधान था। उनके साथ एक चाचाजी और जागृति का भाई भी ट्रेन में पुणे पहुँच गए। 

चार दिन की निरंतर बिना सोए की गई यात्रा की भयंकर थकान के बाद पुणे पहुँच जाना उनके लिए किसी उपलब्धि से कम नहीं था। एक सामुदायिक भवन में ठहरने की व्यवस्था थी। वहाँ जागृति की मौसी जी ने उनके खाने पीने का बंदोबस्त भी कर दिया था। उन चारों ने नहा कर फ़्रेश महसूस किया। जागृति के ससुराल वालों से संपर्क करके उन्हें आश्वस्त किया कि दुल्हन पुणे पहुँच गई है और शाम को सगाई की रस्म के लिए गुरू दरबार में समय पर आ जाएगी। 


दुल्हन के पास झपकी लेने तक का समय नहीं था। अतः वह बाक़ी सबको छोड़ कर अपनी मौसी जी के साथ पहले से ही तय किए गए ब्यूटी पार्लर में तैयार होने के लिए चली गई। लेकिन मुसीबतों ने अभी पीछा नहीं छोड़ा था। वहाँ पहुँच कर देखा क्या कि पार्लर तो बंद था! पता  चला कि पार्लर वाली के परिवार में कोई घटना हो गई है और वह पार्लर नहीं खोल पाएगी। 

दुल्हन के मेकअप के लिए पच्चीस साल पहले भी पार्लर का ही सहारा हुआ करता था। मौसी जी ने पी सी ओ से इधर-उधर अपने जान पहचान वालों को कुछ फ़ोन किए और उन्हें स्थिति बताई, थोड़ी मशक़्क़त के बाद एक नौसिखिया पार्लर वाली ने जागृति को तैयार करने की ज़िम्मेदारी उठा ली।

 लेकिन इस बीच, इतनी समस्याओं से जूझकर जागृति अब रूआंसी हो गई थी। उसका मन कर रहा था कि कहीं रूक कर किसी के कंधे पर सिर रखकर रोकर मन हल्का कर ले! लेकिन रूकने जितना तो क्या आंसू बहाने जितना भी समय न था। 

उसे ओम की हिदायत याद आ रही थी कि शाम को आठ बजे दरबार बंद होता है, उस से पहले सगाई की रस्म पूरी करनी होगी। ओम उसके होने वाले पति का नाम है। 

पहले ही शाम के पाँच बज रहे थे। यदि तैयार होने और दरबार तक पहुँचने का समय गिनें तो वैसे ही बहुत देर हो चुकी थी। वह तुरंत तैयार होने चल दी। दो घंटे में वह तैयार हो गई। अब मौसीजी की बारी थी तैयार होने की क्योंकि वहाँ से सीधे सगाई स्थल पर जाना तय था। 

उधर सात बजते ही दरबार के महराज जी यानि पंडित जी ग़ुस्सा होने लगे कि “इतनी देर हो चुकी है, दुल्हन अब तक नहीं आई है! अब 15 मिनट में नहीं पहुँची तो मैं दरबार बंद करके चला जाऊँगा, फिर तुम लोग जाने और तुम्हारा काम जाने! मेरे समय की थोड़ी तो क़दर करो! तुम लोगों को मैंने पहले ही बता दिया था कि….” महराज की धमकी सुनकर ओम और उसके परिवार वालों पर बेहद बुरी बीत रही थी। लेकिन 16 जुलाई की उस शाम को, जागृति की मम्मी और अन्य सदस्य भी मौजूद थे, अत: वे भी महराज को शांत करने की कोशिश कर रहे थे। उस ज़माने में मोबाइल फ़ोन तो थे नहीं कि पल पल की खबर मिल सके। 

ठीक आठ बजे जागृति ने दरबार में प्रवेश किया। महाराज ने ग़ुस्से वाले खरे खोटे बोल उसे भी सुनाए। जागृति ने समस्याओं की फ़ेहरिस्त में इसे भी शामिल कर लिया और मुस्कुराते हुए महराज के आगे हाथ जोड़ दिए। महराज ने कुछ मंत्र पढ़े फिर दूल्हा दुल्हन को अँगूठियाँ पहनवाई, फिर माला पहनवाई। शगुन का आदान-प्रदान करवाया, बड़ों के पैर छूने की रस्म हुई और सबको मिठाई खिलाई। झटपट झटपट 20 मिनट में यह सारा कार्यक्रम संपन्न हो गया। महराज ने सबको दरबार से बाहर निकाल कर दरबार का द्वार बंद कर दिया। 

इस तरह जागृति और ओम की सगाई सम्पन्न हुई! 

क्रमशः 

पूजा अनिल

शनिवार, 28 सितंबर 2019

कहानी - नया जन्म लेना

नया जन्म लेना   

 नीकोनीको!!! उठो न जल्दी!
क्या हो गया लोलीक्यों सुबह सुबह शोर कर रही हो डिअर? - नीकोलास ने आँख जबरन खोलते हुए हैरानी से पूछा। 
यहाँ आओ न! हम मम्मी-पापा बनने  वाले हैंदेखो तो!! - लोलीता  ने अपनी बात पर ज़ोर देते हुए ख़ुशी में चिल्ला कर कहा। 
क्या? - नीको को बात पसंद नहीं आई। 
हाँ यारसुनो नापॉजिटिव है रिजल्ट! - लेकिन लोलीता  की ख़ुशी का अंत न था। 
तुमने इस बार भी कंट्रासेप्टिव नहीं लिया न? - नीकोलास का स्वर बुझा बुझा था। 
नीकोतुम जानते हो नमुझे अब एक बच्चा चाहिए। - लोली के स्वर में दृढ़ता थी। 
तुम पागल हो गई हो लोला! - अब तक छुपा हुआ नीको का गुस्सा अब शब्दों में झलक आया। 
मैं नहींतुम पागल हो गए हो नीकोहर बार इनकार कर देते हो! -इतनी सी झिड़कियों से लोली का मिजाज़ भी बदल गया और दोनों के बीच गुस्सा अब तक़रार पर उतर आया। 

तो और नहीं तो क्या करूँतुम जॉब में बिजी होमेरा भी अभी अभी प्रमोशन हुआ हैमैं खुद नए,  प्रोजेक्ट में लगा हूँबच्चे को कौन संभालेगाकुछ तो प्रैक्टिकल सोचो! 

देखोदस साल पहले यह बात कहते अगर तुम तो मैं सोच में पड़ जातीपर अब मुझे सत्रह साल से ज़्यादा हो गए यार इसी जॉब में! छह महीने मेटरनिटी लीव  भी आराम से मिल जाएगी और बच्चे को समय देने की भी कोई दिक़्क़त नहीं होगी!

तुम तो दस साल पहले भी बच्चा चाहती थीवो तो मैंने ही रोक लिया था तुम्हे!
तो तुम क्या चाहते होअबो्र्ट कर दूँ इसे भी?
मेरी उम्र ही क्या है अभी!! तैंतीस साल में मेरे लिए अभी अपना कैरिएर बनाने का समय है यारतुम समझती क्यों नहीं?
और मेरी उम्रतुम्हें नहीं मालूम कि इस साल जून में चालीस की हो जाउंगी मैंक्या तुमने नहीं देखा कि  पूरी जवानी काम किया है मैंनेयह घर मैंने अपनी मेहनत की कमाई से बनाया है. यह कार लिए जो तुम शान से घूमते होवो भी मैंने अपनी कमाई से ली हैसाल में जो चार यूरोप ट्रिप करते हो तुम मेरे साथउसका सारा खर्च भी मैं ही उठाती हूँ. आधा जीवन समर्पित कर दिया तुम्हारे लिए मैंनेऔर अब जब मैं एक ख़ुशी चाहती हूँतो तुम मुझे हज़ार बहाने दे रहे हो!
ऐसी बात नहीं करिन्यो! मैं बस थोड़ा सा समय और चाहता हूँ। 
अच्छा! तुम्हें समय चाहिएपर मैं कहाँ से लाऊँ समयअपनी गायनेक से मिली थी मैंउसका भी कहना है कि अब हाई टाइम है! 
तुम साल दो साल नहीं रुक सकती मेरी जानफिर तुम जैसा कहोगीवैसा ही करूँगा मैं। पक्का! तब तक मेरा एल्बम भी रिलीज़ हो जायेगा यार! - नीकोलास कुछ शांत स्वर पर उतर आया। 
नहीं रुक सकतीबिलकुल नहीं। तुम्हारे साल दो साल के चक्कर में पहले ही  मैं दो एबॉर्शन करवा चुकी हूँ नीको! अब और नहीं। तुम चाहो तो अपनी अलग दुनिया बसा सकते हो। मैं अकेली ही अपना बच्चा पालने में पूरी तरह समर्थ हूँसमझे?
तुम सच में पागल हो गई हो लोलाएक बच्चे के पीछेजो अब तक इस दुनिया में आया भी नहींउसके लिए तुम मुझे छोड़ने को तैयार होजबकि हम चौदह साल से एक दूसरे को जानते हैं और एक दूसरे के साथ हैं!!
तुम यह बात क्यों नहीं समझते कि बच्चा एक भावनात्मक सुरक्षा प्रदान करता हैबच्चे की हंसी किलकारी घर में एक अनोखी ख़ुशी भर देती है। बच्चा माँ और पिता को और नजदीक लाने का जरिया बनता है। बच्चा दो परिवारों को जोड़ने का सेतु बनता है! और सबसे महत्त्वपूर्ण यह कि बच्चों से ही मानव वंश आगे प्रसारित होगा!!
मैं कब इस सब से इंकार करता हूँ मेरी जानबस थोड़ा वक़्त ही तो मांग रहा हूँ तुमसे!
मैंने तो अपना पूरा वक़्त दिया है तुम्हे निकोलास। याद हैजब तुमने यूनिवर्सिटी की पढाई शुरू कीतभी से तुम मेरे साथ आकर रह रहे होमैंने इस सारे वर्षों में तुम्हारी हर एक ज़रूरत पूरी की। पढाई पूरी होने तक मैंने तुम्हारे लिए सारी सुख सुविधा जुटाईयहां तक कि  तुम्हे नौकरी दिलवाने के पीछे मेरे कितने ही कॉन्टेक्ट्स तुम्हारे काम आयेतुम्हारे प्रमोशन के लिए भी मैंने अपने सीनियर्स से सिफारिश करवाई। यह सब क्या तुम्हे समय देना नहीं थाबोलो

अब यह सब गिनवा कर तुम मुझ पर एहसान जता रही होकसैलेपन और अपराधबोध से भर उठा नीको। 

बिलकुल! एहसान किया है मैंने तुम पर।  याद करो वो दिनजब लगातार मिलती नाकामी से दुखी थे तुम और निराश हो चुके तुम्हारे माँ बाप ने तुम्हे घर से निकाल दिया था और तुम अपना एक बैकपैक और गिटार लिए पब में दोस्तों के सामने रो रहे थे। जब कोई तुम्हे शरण देने को तैयार नहीं थातब तुम्हे उठा कर अपने साथ ले आई थी मैं।  उस अप्रिय क्षण को कैसे भूल सकते हो तुमसाथ ही उस पल तुम पर की गई कृपा को कैसे भूल सकते हो तुम? - लोली का अहंकार उभर आया उस क्षण में। 

मुझे नहीं मालूम था कि एक दिन तुम उस एहसान को इस तरह जताओगीवर्ना मैं कभी तुम्हारे साथ नहीं आया होता! - गहराता अपराधबोध अब क्रोध में परिवर्तित हो रहा था। 

हद्द है यार! किसी ने तुम्हारा जीवन संवारने के पीछे अपना जीवन समर्पण  कर दिया और तुम उसे ही ताना मार रहे हो? - अहंकार और संवेदना की सीमायें गड्ड मड्ड हो गईं। 

अच्छा!! तो तुम्हे यह लगता है कि तुम न होती तो मैं अब तक सड़कों पर भीख मांग रहा होताकोई ग़लतफ़हमी मत रखोमैं अच्छे से अपनी काबिलियत पहचानता हूँ और तुम्हारे बिना भी अपना जीवन जी सकता हूँसमझी?

ओह्ह रियलीतुम आज ही अपना सामान यहां से ले जा सकते हो आलसी निकोलास! और सुनोपलट कर कभी मुझे अपना मुंह मत दिखानाएहसान फरामोश! - विरले ही लोलिता किसी से इस तरह नाराज़ होती थी। 

नीकोलास भी इस समय की बहस से तंग आ गया और उसने ताव में अपना सामान बांधना शुरू कियासाथ ही दोनों की बड़-बड़ चलती रही।  दोनों की सुबह इस बहस में बर्बाद हो चुकी थी।  शनिवार सुबह थीअतः दोनों को ही ऑफिस नहीं जाना था। सामान बाँध जैसे ही नीकोलास ने कार की चाबी उठाईलोला ने गुस्से में उसे चाबी वहीँ रखने का आदेश दे दिया। 

बात सच भी थीघर भी लोला का थाकार भी उसी की।  नीकोलास के पास कुछेक नक़ल की हुई धुनों और उसकी सुस्ती के अलावा अपना कहने को कुछ भी न था।  इतनी मेहनत करने की उसने कभी फ़िक्र ही नहीं की थी कि अपने लिए कुछ जोड़ सके।  सारे ऐशो आराम हासिल थे उसे लोला के साथ। उसे तो बस गिटारिस्ट बनने  की धुन सवार थी।  सो उसने एक म्यूजिक ग्रुप ज्वाइन कर रख था।  पर उस ग्रुप के साथ उसका जेब खर्च भी नहीं निकलता था।  तब लोला ने ही उसे एक म्यूजिक स्कूल में जॉब दिलवा दी थी। 

मेड्रिड के सरकारी महकमे में उच्च पदस्थ लोला अपने सरल स्वभाव और मेहनती गुणों के कारण सभी के लिए सम्मानीय हैसियत रखती थी। 
वर्षों पहले किसी पब-बार में उसकी नीकोलास से दोस्ती हुई थीऔर फिर दोस्ती प्रेम में बदल गई। उम्र का अंतर उनके प्रेम के बीच कभी बाधा नहीं बना।  हाँलोला एक बच्चा हमेशा से चाहती थीजिसे नाकामयाब नीकोलास हमेशा टालता रहा था।  लेकिन इस बार लोला उम्र के जिस पड़ाव पर खड़ी थीवहाँ से वह कोई और समझौता करने को तैयार न थी और दूसरी तरफ नीकोलास अपने आप को स्थापित करने के हर संभव प्रयास में बच्चे की जिम्मेदारी उठाने को कतई तैयार न था। 

गुस्से में नीकोलास घर से निकल तो गयापर अब जाये तो जाये कहाँकोई भी तो ठिकाना नहीं था उसका। कुछ देर यूँ ही गली में इधर उधर भटकने के बाद और अपनी ही सोच पर पछता करखुद को दो चार गालियाँ दे कर वो पुनः घर लौट आया।  दरवाजा खुला थाजैसा वह छोड़ कर निकला थाबिलकुल वैसे का वैसा ही। उसे हैरानी हुई कि लोली ने बंद क्यों न किया दरवाजाजल्दी से अंदर गया वो। भीतर वाश रूम में लुढ़की हुई थी रक्त से सनी लोलाकमजोर और लगभग बेहोश सी। 

हैरान परेशान उसने तुरंत 112 पर कॉल करके एम्बुलेंस बुलाईलोला को हॉस्पिटल ले जाया गया। सुबह के तनाव और बहस ने लोला की मानसिक स्थिति को गहरे अवसाद में धकेल दिया था।  इसी अवसाद में उसका पुनः एबॉर्शन हो चुका  था। इतने सारे एबॉर्शन के बाद माँ बनने के लिए अब लोला को एक नया जन्म लेना होगा! चाहतों की ज़मीन बेहद भुरभुरी होती है। उसमें धंसते जाओ तो बाहर निकलना असंभव ही हो जाता है। अक्सर चाहतों की लाशें उसी ज़मीन के नीचे दफ़न हुई मिलती हैं। 

इधर निकोलास अपने ख्वाब  पूरा करने के लिए कहीं नई नौकरी तलाश रहा था। उड़ान लम्बी थीपंख छोटे! काश कि नामुमकिन ख्वाबों के पंख ईश्वर ने कुछ और बड़े बनाये होते!
- पूजा अनिल