नवरात्रि एक प्रमुख हिंदू त्योहार है जो देवी दुर्गा की पूजा के लिए मनाया जाता है। यह आमतौर पर सितंबर या अक्टूबर में आता है और नौ रातों तक चलता है। नवरात्रि का अर्थ है "नौ रातें," और इस दौरान देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की आराधना की जाती है।
एक बूँद
गुरुवार, 3 अक्तूबर 2024
नवरात्रि के संदर्भ
नवरात्रि एक प्रमुख हिंदू त्योहार है जो देवी दुर्गा की पूजा के लिए मनाया जाता है। यह आमतौर पर सितंबर या अक्टूबर में आता है और नौ रातों तक चलता है। नवरात्रि का अर्थ है "नौ रातें," और इस दौरान देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की आराधना की जाती है।
मंगलवार, 17 सितंबर 2024
गणपति और अध्यात्म
गृहस्थ जीवन जीते हुए आध्यात्मिक यात्रा एक अलग ही धीमी गति से चलती है। इस यात्रा में जीवन के सत्य एवं वास्तविक अनुभव हमारे लिए गुरु का कार्य करते हैं।
अध्यात्म की राह पर चुप रहने का बेहद महत्व है। जितनी अधिक चुप्पी होगी, उतना ही अधिक स्वयं से पहचान होती जाएगी। स्वयं को पहचानने की आवश्यकता इसलिए है कि अपने मूल स्वरूप को खुली आँखों द्वारा नहीं देखा जा सकता है, अत: अपने भीतर खोजना पड़ता है, जो कि केवल मौन द्वारा ही संभव होता है।
बहुत समय से चुप रहने का अभ्यास करती हूँ मगर मौन व्रत नहीं था। चुपचाप इस यात्रा का आनंद लेते हुए इस बार भी गणपति जी का आह्वान किया। मेरे बनाए मिट्टी के गणपति मुझे सिखा रहे हैं कि चुप बैठने का अभ्यास करती रहना। आज उनकी विदाई है, लेकिन वे अपने बड़े बड़े कानों से प्रकृति की अनमोल ध्वनियों को सुनने और सूक्ष्म नेत्रों से एकाग्रता साधने का पाठ पढ़ा कर जा रहे हैं। क़दम क़दम ही सही, यह यात्रा चलती रहेगी।
विदा गणपति। पृथ्वी यात्रा के पश्चात् आपकी माँ से पुनः मिलने की अद्भुत घड़ी आ गई है। कुछ दिन के सुखद सानिध्य के लिए आपका धन्यवाद। 🙏
तस्वीर गणपति स्थापना के पहले दिन यानि गणेश चतुर्थी की।
मंगलवार, 10 सितंबर 2024
अकेले तुम और हम
क्या तुम्हें पता है कि
-कितनी दूर तक जा कर लौट आती है मन की आवाज़?
असीम आसमान और निस्सीम समुन्दर की तरह
अनन्त तक चली जाती है आवाज़,
रखी रहती है गुदगुदी बनकर,
मन की आवाज़ वही गुनगुनाहट है
जो तुम कभी-कभी अनचाहे अपने होंठों पर ले आते हो
न, नहीं बना अकूत को नापने का कोई यंत्र, मगर तुम जो मेरे सामने हो, मैंने सुन लिया सब कुछ तुम्हारे मन का!
-कि किसी से बात करने के बाद कितनी बची रह जाती हैं बातें?
एक गुच्छा भर फूल बिखर जाएँ तो बिखर जाती है ख़ुशबूदार बात,
तुमसे की गई अथाह बातों के बाद जाने कितनी ख़ुशी बिखरी होगी, तुम्हें भी तो नहीं पता!
फिर भी मन किया तुमसे कुछ और बात करूँ,
लगा था कि यह तो कहा ही नहीं, जबकि सोच रखा था कि इस बार यह ज़रूर कहना है,
हाँ, बातें तो होंगी अनगिनत, कहे जाने के बाद भी होंगी बातें कई, जो बार बार कही जाएंगी,
क्योंकि मन की पुलक पर सवाल उठाने का प्रश्न ही नहीं!
-कि कितनी रातें हमने चुपचाप बिता दीं, अनमने मन को समझा पाए क्या?
इस अबोले से न तुम राज़ी हो न मैं, फिर भी ढोए जा रहे हैं अनचाहे बोझ की तरह,
अब समाप्त करो इस खामोश स्याह रात को, तोड़ दो चुप्पी की दीवार,
सच कहूँ, यदि तुम वहाँ से आओ और मैं यहाँ से, तो दुगुनी गति से मिटेंगी अहंकार की दूरियाँ,
फिर हम उन अनसुलझी गुत्थियों के ग़ुब्बारे पिन से फोड़ देंगे
और आवाज़ की गुफ़ा में पुलकित मन के बिस्तर पर सितारों संग जगमगाएँगे!
- पूजा अनिल
बुधवार, 31 जुलाई 2024
एक जग पानी
तीसरे फ्लोर पर रहने वाली आँटी ने शादी नहीं की थी। कोई विशेष कारण रहा होगा जो वे किसी से इस विषय पर चर्चा तक करना पसंद नहीं करतीं थीं।
गुरुवार, 18 जुलाई 2024
जागृति की शादी - आख़िरी किस्त
अध्याय 4 - दार्शनिक जागृति और ओम की बातें
18 जुलाई 1999जागृति की शादी - पार्ट 3
17 जुलाई - जब फूलों से सजी जागृति दरबार से बाहर निकले तो ढोल बाजे बजने लगे, आतिशबाज़ी होने लगी।शादियों वाले अटपटे नाच भी हुए। जागृति अपने लिए यह सब देख कर ख़ूब ख़ुश हो गई, उसकी पिछले चार दिन से चल रही भाग दौड़ की थकान मिट गई।
मंगलवार, 16 जुलाई 2024
कारगिल युद्ध और जागृति की शादी- पार्ट 2
अध्याय २- 16 जुलाई 1999 - सगाई करवाने वाले पंडित जी की धमकी
प्रार्थना का असर था या इन्द्र देव बरस बरस कर थक चुके थे…कौन जानता है!! किन्तु मूसलाधार बारिश अब कम हुई और रूकी हुई गाड़ियों का क़ाफ़िला धीरे-धीरे ही सही लेकिन आगे बढ़ने लगा। लैंड स्लाइड वाली पहाड़ी चढ़ाई की जगह पर भी मलबे को एक तरफ़ हटा कर गाड़ियों के गुजरने जितनी जगह बना दी गई थी। 16 जुलाई की सुबह हो चुकी थी कल वाले कष्टों के बादल छँटने लगे थे। सही समय पर पहुँच जाने की उम्मीद जगने लगी थी। कुछ ही घंटों में जागृति की मिनीबस बंबई पुणे टनल तक पहुँच गई। टनल के बाहर बड़े से बोर्ड पर लिखा था “बोगद्यात थांबा नको (टनल में रूकें नहीं)! सब लोग प्रसन्न हुए कि अब गंतव्य तक पहुँचने से पहले कहीं रूकना नहीं है।
लेकिन यह विचार जल्दी ही निराशा में बदल गया जब टनल क्रॉस करने के बाद पुनः ट्रैफ़िक जाम में अटक गए!
जागृति के मन में दार्शनिक विचार आ रहे थे कि यदि एक शादी के लिए मार्ग पार करने में इतनी कठिनाई उठानी पड़ सकती है तो कारगिल युद्ध में सैनिकों को कितनी परेशानी हो रही होगी! देश प्रेम जन्मजात उसके ह्रदय में अंकित था। होता भी क्यों न? जागृति के पूर्वज देश का बँटवारा होने से पहले सिंध प्रांत में रहते थे। भारत देश को अपना देश मानने का उनका जज़्बा बँटवारे के समय उन्हें राजस्थान ले आया। अपना सब कुछ छोड़ छाड़ कर चले आना अत्यंत कष्टकारी था लेकिन देश प्रेम से बढ़कर नहीं था। शून्य से जीवन आरम्भ करने की हिम्मत जागृति को अपने पुरखों से ही प्राप्त हुई है। लेकिन आज तक उसे शिकायत है कि सरकार के वादे के मुताबिक़ उसके दादा परदादा को पाकिस्तान में छोड़ आए ज़मीन जायदाद में से कुछ भी नहीं दिया गया। ज़मींदार थे, शाही जीवन जीते थे, मगर शरणार्थियों की तरह ख़ाली हाथ आए वे, धीरे-धीरे अपने श्रम से जीवन अर्जित किया।
लगता है कि सरकारों के वादे होते ही तोड़ने के लिए हैं! अन्यथा कारगिल युद्ध भी न हो रहा होता! फ़रवरी 1999 में ही तो लाहौर संधि के तहत बॉर्डर पर संदिग्ध गतिविधियों पर रोक लगाने की बात हुई थी। लेकिन हुआ क्या? पाकिस्तान के ग़लत इरादों के चलते युद्ध हो रहा था और हमारे देश के जवान सैनिक मारे गए। जागृति को इस बात से सख्त ऐतराज़ है कि राजनीतिक कारणों से जवानों की जान पर जोखिम हो! किसी अति महत्वाकांक्षी राजा के मन में एक विचार आता है कि उसे किसी अन्य देश की ज़मीन भी चाहिए और उसके पास हथियार भी तो हैं जो बिना प्रयोग किये जंग खा रहे हैं! तो बस..कर दो हमला पड़ोसी देश पर….और राजा के इस विचार की क़ीमत चुकाते हैं जवान सैनिक, जो देश प्रेम में अपनी जान न्योछावर करने के जज़्बे के साथ ही दिन रात जीते हैं! और यह जुमला तो उसे बिलकुल हज़म नहीं होता कि “सैनिक बने ही इस लिए हैं!” उसका बस चले तो किसी जवान को असमय मृत्यु का सामना न करने दे।
बात को भटकने से पहले ही मैं जागृति की कहानी पर लौट आई हूँ। तो हुआ यह कि रूक रूक कर चलती उनकी मिनीबस पुणे सबर्ब के किसी रेलवे स्टेशन के नज़दीक पहुँच गई थी। ट्रैफ़िक जाम को देखते हुए सबने तय किया कि जागृति और उसकी मम्मी को ट्रेन से पुणे रवाना कर दिया जाए, ताकि वे समय सगाई स्थल पर पहुँच सकें। इतनी सारी समस्याओं के बीच यही सबसे अच्छा समाधान था। उनके साथ एक चाचाजी और जागृति का भाई भी ट्रेन में पुणे पहुँच गए।
चार दिन की निरंतर बिना सोए की गई यात्रा की भयंकर थकान के बाद पुणे पहुँच जाना उनके लिए किसी उपलब्धि से कम नहीं था। एक सामुदायिक भवन में ठहरने की व्यवस्था थी। वहाँ जागृति की मौसी जी ने उनके खाने पीने का बंदोबस्त भी कर दिया था। उन चारों ने नहा कर फ़्रेश महसूस किया। जागृति के ससुराल वालों से संपर्क करके उन्हें आश्वस्त किया कि दुल्हन पुणे पहुँच गई है और शाम को सगाई की रस्म के लिए गुरू दरबार में समय पर आ जाएगी।
दुल्हन के पास झपकी लेने तक का समय नहीं था। अतः वह बाक़ी सबको छोड़ कर अपनी मौसी जी के साथ पहले से ही तय किए गए ब्यूटी पार्लर में तैयार होने के लिए चली गई। लेकिन मुसीबतों ने अभी पीछा नहीं छोड़ा था। वहाँ पहुँच कर देखा क्या कि पार्लर तो बंद था! पता चला कि पार्लर वाली के परिवार में कोई घटना हो गई है और वह पार्लर नहीं खोल पाएगी।
दुल्हन के मेकअप के लिए पच्चीस साल पहले भी पार्लर का ही सहारा हुआ करता था। मौसी जी ने पी सी ओ से इधर-उधर अपने जान पहचान वालों को कुछ फ़ोन किए और उन्हें स्थिति बताई, थोड़ी मशक़्क़त के बाद एक नौसिखिया पार्लर वाली ने जागृति को तैयार करने की ज़िम्मेदारी उठा ली।
लेकिन इस बीच, इतनी समस्याओं से जूझकर जागृति अब रूआंसी हो गई थी। उसका मन कर रहा था कि कहीं रूक कर किसी के कंधे पर सिर रखकर रोकर मन हल्का कर ले! लेकिन रूकने जितना तो क्या आंसू बहाने जितना भी समय न था।
उसे ओम की हिदायत याद आ रही थी कि शाम को आठ बजे दरबार बंद होता है, उस से पहले सगाई की रस्म पूरी करनी होगी। ओम उसके होने वाले पति का नाम है।
पहले ही शाम के पाँच बज रहे थे। यदि तैयार होने और दरबार तक पहुँचने का समय गिनें तो वैसे ही बहुत देर हो चुकी थी। वह तुरंत तैयार होने चल दी। दो घंटे में वह तैयार हो गई। अब मौसीजी की बारी थी तैयार होने की क्योंकि वहाँ से सीधे सगाई स्थल पर जाना तय था।
उधर सात बजते ही दरबार के महराज जी यानि पंडित जी ग़ुस्सा होने लगे कि “इतनी देर हो चुकी है, दुल्हन अब तक नहीं आई है! अब 15 मिनट में नहीं पहुँची तो मैं दरबार बंद करके चला जाऊँगा, फिर तुम लोग जाने और तुम्हारा काम जाने! मेरे समय की थोड़ी तो क़दर करो! तुम लोगों को मैंने पहले ही बता दिया था कि….” महराज की धमकी सुनकर ओम और उसके परिवार वालों पर बेहद बुरी बीत रही थी। लेकिन 16 जुलाई की उस शाम को, जागृति की मम्मी और अन्य सदस्य भी मौजूद थे, अत: वे भी महराज को शांत करने की कोशिश कर रहे थे। उस ज़माने में मोबाइल फ़ोन तो थे नहीं कि पल पल की खबर मिल सके।
ठीक आठ बजे जागृति ने दरबार में प्रवेश किया। महाराज ने ग़ुस्से वाले खरे खोटे बोल उसे भी सुनाए। जागृति ने समस्याओं की फ़ेहरिस्त में इसे भी शामिल कर लिया और मुस्कुराते हुए महराज के आगे हाथ जोड़ दिए। महराज ने कुछ मंत्र पढ़े फिर दूल्हा दुल्हन को अँगूठियाँ पहनवाई, फिर माला पहनवाई। शगुन का आदान-प्रदान करवाया, बड़ों के पैर छूने की रस्म हुई और सबको मिठाई खिलाई। झटपट झटपट 20 मिनट में यह सारा कार्यक्रम संपन्न हो गया। महराज ने सबको दरबार से बाहर निकाल कर दरबार का द्वार बंद कर दिया।
इस तरह जागृति और ओम की सगाई सम्पन्न हुई!
क्रमशः
पूजा अनिल