शनिवार, 27 जून 2009

यह है हमारा यूनियन रूम

चलिए आज कुछ हलकी फुलकी बातें करते हैं, एक कॉलेज के यूनियन रूम की सैर कर आते हैं। जहाँ तक हमने देखा है, सभी कॉलेज में एक कॉलेज यूनियन होती है और उनके लिए एक यूनियन रूम.....तो हमारे कॉलेज में भी एक यूनियन रूम है , एक बार हमें वहाँ काम पड़ गया, तो जो कुछ वहाँ देखा, उसकी एक कविता बना डाली। आइये, देखते हैं कि वहाँ क्या हो रहा है :) !!!
यह है हमारा यूनियन रूम


इधर प्रेसीडेंट, उधर वाइस प्रेसीडेंट ,
साथ में बहुत से अटेनडेंटस ,
स्टूडेंट्स से भरा हुआ
जैसे कॉलेज का कॉमन रूम ,
अटेनडेंटस से घिरा हुआ ,
ये है हमारा यूनियन रूम.


गुटबाज़ी है अडी हुई ,
गप्पें होती बड़ी बड़ी ,
कभी कभी तो लगता जैसे,
सबको है बस चडी हुई ,

अभी दिखेगा, चुप चुप बैठा,
जैसे कोई बच्चा भोला,
पर इसका तुम यकीं ना करना,
इस पल माशा, उस पल तोला.

तोड़ फोड़ भी बहुत हैं करते,
कभी किसी से ये ना डरते,
स्ट्राइक्स में आगे रहते ,
अनशन पर भी कभी बैठते ,
कभी कभी ये झूठ बोलते,
और कभी हैं धोखा देते .

हर रंग बिखरता है यहीं,
कभी ग़म और कभी खुशी,
सबके लिए है जगह यहाँ पर
सबके लिए है बातें "घणी",
सबकी मदद को हाज़िर ये लीडर ,
सबसे है इनको "सिम्पैथी".

कोई भी अपनी प्रॉब्लम लाये ,
इनसे सॉल्व करा के जाये ,
आश्वासन इनके नेताओं से ,
काम के बोझ से दबें हों जैसे ,

छोटी छोटी खुशियों में भी,
मांग है होती ,पार्टी खिलाओ ,
प्लेट नहीं तो पेस्ट्री चलेगी ,
साथ में उसके चाय पिलाओ ,

वैसे चाहे रहे अकेला,
कॉलेज फंक्शन के दिनों में ,
बढ़ जाती है ,चहल-पहल ,
बहुत ही शालीन सा दिखता ,
पर छुपाये भारी उथल पुथल ,

ठंडा लगता भले दूर से
पास जाओ तो गरमा गरम ,
यूं लगता है कोई पराया,
पल भर में हो मित्र परम,
दोस्तों-दुश्मनों को छिपाए हुए ,
यह है हमारा यूनियन रूम .

शुक्रवार, 26 जून 2009

नाराजगी का हक

गीतिका, शर्मा जी के ऑफिस में सेक्रेटरी है, शर्मा जी उसके काम से बहुत खुश रहते हैं। एक दिन शर्मा जी ने गीतिका से फाइल मंगवाई , पर गलती से एक फाइल गीतिका के डेस्क में ही रह गयी और उसने ही फाइल शर्मा जी तक पहुंचाई। बाद में शर्मा जी ने उस से फोन कर के बताया तो उसने देखा कि एक फाइल वहीँ रह गयी है, उसने कहा कि वो अभी लेकर आती है, तो शर्मा जी ने उसे कहा, "कोई बात नहीं, मैं पेओन भेजता हूँ, तुम चिंता मत करो। पिओन के हाथ से फाइल भिजवा देना। "

शाम को शर्मा जी घर पर बैठे थे, उनकी पत्नी बड़ी कुशलता से घर और बच्चों को संभालती है, कभी शर्मा जी को कुछ कहने का मौका नहीं मिलता। जब उनकी पत्नी रात का खाना लेकर आई तो आज वो चावल के साथ चम्मच डाल कर ले आई , शर्मा जी ठहरे कांटे से खाने वाले, जब उन्होंने चम्मच देखा तो लगे जी भर कर चिल्लाने, " तुमसे कितनी बार कहा है कि मुझे चावल के साथ काँटा दिया करो, पर तुम हो कि अपने कामों से फुर्सत मिले तब तो मेरी बात सुनोगी, इतने साल हो गए शादी को, फ़िर भी अब तक यह नहीं पता चला कि पति को कब क्या चाहिए होता है।"

पत्नी ने कहा," गलती हो गयी , आप नाराज़ मत होइए, अभी काँटा ला देती हूँ "

अब पतिदेव बड़ी कुटिल मुस्कराहट बिखेरते हुए बोले, "तुमसे इसलिए नाराज़ होता हूँ कि तुम तो मेरी अपनी हो ना........तुम से तो मैं बहुत प्यार करता हूँ, और नाराज़ उसी से हुआ जाता है, जिस से प्यार करते हैं " और एक ठहाका लगा कर हंस दिये पत्नी बिचारी मन मसोस कर ना चाहते हुए भी उनकी हँसी के साथ मुस्कुराने लगी, अपने प्रिय होने का फ़र्ज़ निभाने के लिए।

यह सिर्फ़ एक किस्सा बनाया है, जिसमें एक परिस्थिति को दर्शाया गया है, कि इंसान अपनों और परायों में कितना फर्क करता है। शर्मा जी अपनी सेक्रेटरी के पास पिओन भेज सकते हैं, पर उस पर झल्ला नहीं सकते , और उनकी पत्नी जो बड़े प्यार से उनकी सेवा कर रही है, उनसे मीठे बोल बोलने में कोताही करते हैं क्योंकि वो तो उनकी अपनी है ना......उस से नाराज़ होने का अधिकार तो शादी के समय ही मिल गया होगा उन्हें !!!!!

अक्सर सुना और देखा गया है कि लोग छोटी छोटी बातों पर अपनों से ही नाराज़ होते हैं, और पूछने पर बड़ी आसानी से कह देते हैं कि जिनसे प्यार और स्नेह होता है उन्हीं से ही नाराज़ हुआ जाता है, और ऐसी नाराजगी देखकर तो कोइ भी न्यौछावर हो जाए। पर क्या आप वास्तव में आप अपने प्रिय जनों को , अपने अपनों को नाराज़गी का हक देते हैं? क्या आपको नहीं लगता कि आपके प्रिय जनों की नाराजगी आपको दुःख पहुंचती है? फ़िर भी नाराज़ होते हैं???

आपके प्रिय लोगों ने आपको उनसे प्यार करने का अधिकार दिया और नाराज़ होने का अधिकार आपने स्वयं ही ले लिया !!! प्यार करना अधिकार भी हो सकता है और कर्तव्य भी, किंतु नाराज़ होना ना ही कर्तव्य और ही अधिकार, फ़िर भी अधिकांशतः लोग इस तरह नाराजगी जताते हैं , जैसे यही प्यार करने का सच्चा स्वरुप हो, क्या प्यार को सिर्फ़ प्यार के रूप में ही नहीं जताया जा सकता? अगर अपने किसी प्रिय से कोई भूल हुई है तो उसे सुधारने के लिये प्यार को अपनाने से पीछे हटने की जगह आप प्यार को ही हथियार बनाइए ( नाराजगी को नहीं ) इस से आपको बेहतर नतीजे मिलेंगे और अनावश्यक नाराजगी से भी राहत मिलेगी, आपको भी और आपके अपनों को भी आप भी प्रसन्न और आपके प्रिय भी

क्या आप इस बदलाव के लिए तैयार हैं? यदि हाँ, तो यह संदेश अपने प्रिय जनों तक अवश्य पहुंचाएं।